*झारखंड के एक मंदिर में होती है भगवान शिव के साथ रावण की पूजा*
राजधानी रांची में दुर्गा पूजा काफी भव्य तरीके से मनाई जाती है.यही वजह है की दूर दराज से लोग रांची पहुंचते है.बता दे की रांची के एतिहासिक मैदान मोराबादी में दशहरा मनाई जाती है.इसकी तैयारी जोरों पर है. इस वर्ष रांची के मोरहाबादी मैदान में 75 वां दहशरा मनाया जाएगा. हर वर्ष की तरह इस बार भी पंजाबी-हिंदू बिरादरी रावण दहन की तैयारी में जुटा है गौरतलब है कि 25 साल से रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले को मुस्लिम कारीकर ही बनाते आ रहे हैं.लेकिन रांची से महज 16 किलोमीटर दूर पिठौरिया में एक ऐसा मंदिर है जिसमे भगवान शिव के साथ रावण की भी पूजा की जाती है.
*पिठोरिया में एक अनोखा मंदिर*
दशहरा के पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है और देशभर में अलग-अलग तरीके से रावण दहन किया जाता है. लेकिन रांची से महज 16 किलोमीटर दूर पिठोरिया गांव में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है.और यही वजह है की इस अनोखे मंदिर को देखने और समझने के लिए लोग दूर दराज से पहुंचते है.
*जानिए उस मंदिर को जहां भगवान शिव के साथ रावण की होती है पूजा*
रांची: राजधानी के पिठौरिया में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव के साथ उनके भक्तों में से एक भक्त रावण की भी पूजा की जाती है.जहां दशहरा में एक ओर रावण को बुराई का प्रतीक मानकर पुतला दहन किया जाता है, वहीं दूसरी ओर भगवान भोलेनाथ के साथ रावण की भी पूजा की जाती है. मंदिर के लोगों का कहना है कि रावण भोलेनाथ का बड़ा भक्त था.इस वजह से इस मंदिर में उनकी भी पूजा की जाती है.
*लोगों ने बताया इस मंदिर की खासियत*
मंदिर के कार्यकर्ता ने बताया कि उनके पूर्वज चार पीढ़ियों से इस मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं. इस मंदिर को बने लगभग 400 साल हो गए हैं. मंदिर की बाहरी दीवारों से लेकर अंदर तक कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं.लेकिन मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर दीवार में रावण का चित्र है.बता दें कि मंदिर के अंदर शिवलिंग, नाग, देवी पार्वती की मूर्तियां है.कार्यकर्ता बताते हैं कि रावण बहुत ही ज्ञानी और विद्वान पंडित था और जब भगवान शिव घर में प्रवेश कर रहे थे तो रावण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और उन्हें घर में प्रवेश कराया.
*ब्रह्ममुहूर्त में होती है खुद से मंदिर में पूजा*
पुजारी बताते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में इस मंदिर में खुद से पूजा होती है और आज तक किसी को पता नहीं चल पाया है कि आखिर मंदिर में सुबह सुबह पूजा कौन करता है. स्थानीयों ने बताया की यह मंदिर प्राचीन है और इस मंदिर की बहुत पुरानी कहानी भी है,दरअसल पुजारी बताते हैं कि कई बार पता करने की भी कोशिश की गई की आखिर अहले सुबह कौन पूजा कर के जाता है लेकिन आज तक पता नहीं चला पाया.
*मंदिर में नहीं लगता ताला*
पिठौरिया के रावणेश्वर मंदिर में आज तक ताला नहीं लगाया गया है.बताया जाता है कि मंदिर में जब-जब ताला लगाने की कोशिश की गई तब-तब ताला टूटा मिला, इसलिए आज तक इस मंदिर में ताला नहीं लगा है और इस मंदिर में सुबह-सुबह ही कोई पूजा कोई कर के चला जाता है और स्थानीयों का दावा है कि रावण ही ब्रह्ममुहूर्त में पूजा कर के जाता है.
*मंदिर में अहले सुबह बजती है खुद घंटी*
स्थानियों का दावा है कि मंदिर में अहले सुबह खुद बा खुद घंटी बजती है लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया की ब्रह्ममुहूर्त में कौन पूजा कर के चला जाता है.स्थानीय बताते हैं कि यहां रावण की भी पूजा होती है और यही वजह है कि पिठौरिया में रावण दहन नहीं होता है.उनके प्रति शिव भक्त के रूप में श्रद्धा है.
*रावण थे भगवान शिव के परम भक्त*
हमारे या आपके जुबान में जब भी रावण की बात आती है तो उसे हमेशा बुराई का प्रतीक माना गया है और यही कारण है कि विद्वान होने के बावजूद भी उनकी अच्छाइयों को कम और बुराइयों को अधिक याद किया जाता है. रावण में बुराइयों के बावजूद रावण में एक खासियत थी कि वह बहुत ज्ञानी और शिव भक्त था. इसी वजह से इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ रावण की भी पूजा की जाती है.(करिश्मा)