रांची- झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्ति को लेकर कई बार चर्चा होती रही.वर्ष 2005 से 2007 के दौरान विधानसभा में नियुक्ति को लेकर सवाल खड़ा होते रहे हैं.इसकी जांच के भी आदेश दिए गए. दो आयोग ने इस नियुक्ति की जांच की.जस्टिस विक्रमादित्य आयोग ने राज्यपाल को साल 2018 में जांच रिपोर्ट सौंपी थी जिस पर तत्कालीन राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने जांच के आदेश दिए थे.इस संबंध में झारखंड विधानसभा में भी याचिका दाखिल की गई थी.इस पर लंबी सुनवाई हुई पिछले जून में इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.
सोमवार यानी 23 सितंबर को झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया.इस मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को दे दिया गया है.सीबीआई जांच के आदेश के बाद कथित रूप से अवैध तरीके से बहाल विधानसभा कर्मियों में हड़कंप मच गया है.बड़ी संख्या में अवैध तरीके से भर्ती के आरोप लगे हैं.
झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है.इस संबंध में याचिका दाखिल करने वाले ने यह आरोप लगाया था कि वर्ष 2005 से 2007 के बीच विधानसभा में गलत तरीके से नियुक्तियां हुई है.उल्लेखनीय है कि झारखंड निर्माण के बाद इसके प्रथम विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 और बाद में आलमगीर आलम के कार्यकाल में 324 लोग नियुक्त किए गए थे.विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसींद शशांक शेखर गुप्ता ने इन्हें प्रोन्नति भी दी थी. हाई कोर्ट के आदेश के बाद जल्दी इस संबंध में सीबीआई के द्वारा आगे की कार्रवाई की जाएगी.