रांची – मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने बुलाया है. 24 अगस्त को उन्हें दूसरी बार समन कर रांची के हिनू स्थित जोनल ऑफिस में पूछताछ के लिए बुलाया गया है. इसको लेकर घोर मंत्रणा चल रही है. इससे पहले 14 अगस्त को बुलाया गया था.
प्रवर्तन निदेशालय के पास जमीन से जुड़े कई दस्तावेज है.सूत्रों के अनुसार 95-96 ऐसे डीड हैं जो सोरेन परिवार से जुड़े हैं. इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ED) मुख्यमंत्री से जानकारी लेना चाहता है. 8 अगस्त को जारी किए गए पहले समन को लेकर मुख्यमंत्री ने प्रवर्तन निदेशालय को पत्र लिखकर उन्हें बुलाने के निर्णय के औचित्य पर सवाल खड़ा किया था. मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा था कि इस तरह से समन भेजना गैर कानूनी है. यह कहीं ना कहीं साजिश का हिस्सा है. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि वह इस संबंध में कानूनी अधिकार का सहारा लेंगे.
इधर प्रवर्तन निदेशालय को भेजे गए पत्र का जवाब भी मुख्यमंत्री को निदेशालय ने दिया है. सूत्रों के अनुसार निदेशालय ने मुख्यमंत्री को जवाब देते हुए कहा है कि उन्हें समन जारी करने के पीछे कहीं कोई राजनीतिक भाव नहीं है. जमीन से जुड़े पर्याप्त साक्ष्य हैं जिनके संबंध में उनसे पूछताछ की जानी है. प्रवर्तन निदेशालय का दावा है कि पूरे राज्य से उसने मुख्यमंत्री और उनके परिवार से जुड़े जमीन संबंधी दस्तावेज उपलब्ध हैं.
इस संबंध में राजनीतिक बयानबाजी तो चल ही रही है. भाजपा के प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय एक जांच एजेंसी है और अगर उसने किसी को बुलाया है तो इसमें संबंधित व्यक्ति को सहयोग करना चाहिए. किसी मुख्यमंत्री को ऐसे ही कोई एजेंसी नहीं बुलाती है. प्रदीप वर्मा ने यह सवाल किया कि आखिर मुख्यमंत्री जांच में सहयोग के बजाय ईडी को धमकी क्यों दे रहे हैं. अगर कहीं कुछ दाल में काला नहीं है तो फिर उन्हें डरने की जरूरत नहीं है. अगर वह नहीं जाते हैं तो इसका अर्थ यह होगा कि गड़बड़ कुछ जरूर है.
पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि जिस प्रकार की बातें आ रही हैं. जिस प्रकार के आरोप लग रहे हैं, ऐसे में तो मुख्यमंत्री को इस्तीफा देकर जांच का सामना करना चाहिए. वर्तमान प्रकरण से राज्य की छवि खराब हो रही है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी संकल्प यात्रा से पहले और संकल्प यात्रा के दौरान राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप लगा रहे हैं. पिछले 16 अगस्त को उन्होंने एक जमीन संबंधी दस्तावेज जारी करते हुए गलत नाम के आधार पर जमीन खरीदने का भी आरोप लगाया है.
इधर कानून के जानकार कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास दो ही विकल्प हैं. एक तो वे जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थित होकर पूर्व की भांति उनके सवालों का जवाब दे दें. यह अधिकार जांच एजेंसी का बनता ही है. विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री को बुलाने का मतलब ही है कि जांच एजेंसी के पास वैसे दस्तावेज हैं या ऐसी जानकारियां हैं, जिनका उनसे जुड़ाव है.दूसरा विकल्प यह है कि मुख्यमंत्री कोर्ट की शरण में जाकर इस समन के खिलाफ कोई आदेश ले लें.
24 अगस्त में ज्यादा समय नहीं है. अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कौन सा विकल्प चुनते हैं.जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थित होते हैं या नहीं या फिर कानून का सहारा लेते हैं.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर का कहना है कि राजनीतिक विद्वेष की वजह से गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को परेशान किया जा रहा है. इसका एक बड़ा उदाहरण यह है कि 14 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस समारोह के एक दिन पहले कोई एजेंसी को यह कैसे विचार आया कि मुख्यमंत्री को पूछताछ के लिए बुलाया जाए जबकि मुख्यमंत्री का कई कार्यक्रम एक दिन पूर्व होता है.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रीम भट्टाचार्य ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय जानबूझकर एक आदिवासी मुख्यमंत्री को परेशान कर रहा है. झारखंड और झारखंडवासियों के लिए समर्पित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्र सरकार के इशारे पर तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि वह भी आदिवासी हैं उन्होंने राज्य के पहले मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला है. उन्होंने झारखंड के विकास और यहां के लोगों के हितों को अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सर्वोपरि रखा. जनता का जनादेश हमेशा शासन को ध्यान में रखना चाहिए. हेमंत सोरेन को राज्य की जनता ने इसलिए कुर्सी नहीं सौंपी कि वे राज्य के संसाधनों की लूटपाट करें. राज्य की जनता की सेवा ईमानदारी से करने के लिए उन्हें जनादेश दिया गया. लेकिन हेमंत सोरेन जनता की भावना को नजर अंदाज कर अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं. आदिवासी होने का तर्क देकर वे भ्रष्टाचार करने का अधिकार कहां से लाए हैं.
मालूम हो कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी लगातार यह कह रहे हैं कि जिस प्रकार के काम सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन ने किया है, एक दिन उन्हें जेल जाना ही होगा. गलत करके कोई कब तक बच सकेगा. लालू यादव भी कभी इसी गलतफहमी के शिकार थे कि वह कुछ भी कर लेंगे उनका कुछ बाल बांका नहीं हो सकता. लालू यादव का उदाहरण सबके सामने है. कितने बार वे जेल के अंदर गए और बाहर आए,सभी जानते हैं.ऐसे कई अन्य नेता भी हैं जिन्हें अपने कुकृत्यों के कारण दंड का भागीदार होना पड़ा है.