विशेष लेख : अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के लिए भारत में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था.इस समय गांधी युग कहें तो गलत नहीं होगा.भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी के मार्गदर्शन में बहुत कुछ चल रहा था.भारत के आंदोलन में अलग-अलग स्तर पर लोग भूमिका निभा रहे थे.क्रांतिकारी और युवाओं के नेतृत्व में भी एक बड़ा आंदोलन चल रहा था.अंग्रेजों की नजर में युवाओं में जोश भरने वाले क्रांतिकारी खटक रहे थे.युवा क्रांतिकारियों में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भी थे.अंग्रेज शासन के प्रमुखों को उनसे खतरा महसूस हो रहा था.
यही कारण है कि आंदोलन के दौरान भारतीयों पर जुल्म करने वाले कि जब हत्या की गई तो इस मामले के निष्पादन के लिए विशेष ट्रिब्यूनल का गठन किया गया.हम बात कर रहे हैं उन क्रांतिकारियों के बारे में जिन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी.लाहौर सेंट्रल जेल में इन तीनों को फांसी दी गई थी.भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन फांसी पर लटकाया गया था.1931 में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन मजबूत तरीके से आगे बढ़ रहा था.राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गांधी नेतृत्व कर रहे थे.वहीं अलग-अलग स्तर पर भी आंदोलन चल रहा था.
उनमें से भगत सिंह भी एक थे. आज 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है क्योंकि भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया गया था.अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने गंभीरता से लिया.विशेष सुनवाई.और जल्द निष्पादन के लिए ट्रिब्यूनल का गठन किया गया जिसने भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई.देश में इस सजा के खिलाफ गुस्से का माहौल था.लोगों में और खास तौर पर युवाओं में इन चीजों को लेकर बहुत गुस्सा था. साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाई गईगईं. लाठीचार्ज पुलिस अधिकारी जेम्स स्कॉट के आदेश पर हुआ था.भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को इस पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि लाठी लगने की वजह से लाला लाजपत राय का निधन 17 दिन बाद हो गया था.यह तीनों जेम्स एस्कॉर्ट से बदला लेना चाहते थे.उसे मारना चाहते थे.लेकिन गलती से पहचान सही नहीं होने की वजह से जेम्स स्कॉट की जगह सांडर्स को गोली मार दिया गया और उसकी मौत हो गई.इसी हत्याकांड के आरोप में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को दोषी ठहराया गया और उन्हें फांसी की निर्धारित तारीख से एक दिन पहले ही फंदे पर लटका दिया गया.
इस घटना की याद में हम प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद दिवस मनाते हैं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इन तीनों युवाओं की कुर्बानी को कभी बुलाया नहीं जा सकता है नई पीढ़ी को इससे प्रेरणा लेने की जरूरत है. अंग्रेजी अदालत ने इन तीनों को 24 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी देने का आदेश दिया था लेकिन देश के अंदर माहौल को देखते हुए एक दिन पूर्व ही इन तीनों को फांसी दे दी गई. इस घटना ने देश के लोगों को झंकझोर कर रख दिया था.