- नई दिल्ली: झारखंड में कई जनजातीय भाषाएं हैं. इन भाषाओं का अपना इतिहास और सांस्कृतिक महत्व रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार हमेशा इस बात की पक्षधर रही है कि मातृभाषा को उपयुक्त सम्मान और उनके विकास का आधार दिया जाए. झारखंड बीजेपी के वरिष्ठ नेता महामंत्री और राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार वर्मा ने सर्वोच्च सदन में विभिन्न भाषाओं को संवैधानिक सम्मान देने की मांग की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2022 में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि जिस प्रकार से बच्चों को मां गढ़ती है उसी प्रकार से क्षेत्रीय मातृभाषा वहां के संबंधित लोगों को पहचान या गढ़ती है. उन्होंने आगे कहा कि वे केंद्र सरकार से इस सदन के माध्यम से मांग करते हैं कि मुंडारी, नागपुरी, खोरठा, कुड़माली, हो और नागपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए.
उन्होंने कहा कि ये भाषाएं झारखंड की समृद्ध संस्कृति का उदहारण हैं. लेकिन आज की तारीख में इन भाषा से जुड़े लोग ऐसे मानसिक द्वंद्व में जी रहे हैं जिनको अपनी भाषा,अपने पहनावे और खान-पान को लेकर उन्हें संकोच होता है. जबकि विश्व में कहीं भी ऐसा नहीं है. हमारी मातृभाषा को गर्व के साथ बोलना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सदन के माध्यम से केंद्र सरकार से वे मांग करते हैं कि इन भाषाओं को उचित सम्मान देकर झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को पहचान देने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि इन भाषाओं के बोलने वाले की संख्या लाखों में हैं.इनकी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है.भगवान बिरसा मुंडा के उलगुलान की भी भाषा ‘मुंडारी’ रही थी. यह भाषा मुंडा समाज की पहचान है.’हो’ भाषा के बोलने वाले लाखों की संख्या में सिंहभूम में रहते हैं.कुड़माली भाषा का संबंध पश्चिम बंगाल और झारखंड की राड़ सभ्यता से जुड़ी. इस भाषा का प्रयोग कुड़मी समाज के लोग बोलते हैं. नागपुरी भाषा राजधानी रांची और आसपास के क्षेत्र में बोली जाती है. यह पूरे राज्य में संवाद की मूल भाषा रही है.
सांसद प्रदीप कुमार वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत स्थानीय भाषा का स्कूली शिक्षा में प्रयोग व्यापक रूप से हो ऐसा आग्रह किया गया इन भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किए जाने से इनका उस स्तर पर प्रयोग नहीं हो पाता है जिस कारण से इनके संवर्धन, संरक्षण और शिक्षण उस स्तर से नहीं हो पता है जैसा होना चाहिए था. इनमें कई तरह की बाधा उत्पन्न होती है. इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कर केंद्र और राज्य सरकार विशेष योजना बनाकर और अनुदान देकर इनका विकास किया जाए.
राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार वर्मा ने इन भाषा से जुड़े लोगों की भावना को सदन में बहुत ही तार्किक तरीके से रखा इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का जबरदस्त तर्क दिया. उनकी इस मांग के पक्ष में विभिन्न राजनीतिक दल के नेता और मिल रहे हैं. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राकेश सिन्हा ने कहा कि झारखंड में जनजातीय भाषाओं की एक बड़ी श्रृंखला है. इन्हें सम्मान मिलना ही चाहिए. केंद्र की मोदी सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. कई बुद्धिजीवी कहते हैं कि मातृभाषा का विकास बेहद जरूरी है.