*नीतीश कुमार पर आखिर लोगों का विश्वास क्यों रहता है, भाजपा इसलिए नहीं साथ है, जानिए*

न्यूज़ डेस्क : बिहार में विधानसभा का चुनाव हो रहा है। 243 सीटों पर दो चरण में मतदान होगा। चुनाव प्रचार चल रहा है।एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच लड़ाई के बीच में जन सूराज भी है।जन सुराज बहुत कुछ नहीं तो थोड़ा बहुत तो असर डाल ही सकता है।खैर सवाल यह है कि चुनाव में जनता मालिक है। वोट देने तक वह मालिक है। फिर उसके बाद वह मूकदर्शक बन जाती है।
लोकतंत्र में यही सब कुछ होता है। इससे अच्छाई कहिए या फिर कमी, यह विश्लेषण का फिलहाल समय नहीं है।बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के बीच भी खटपट शुरू हुए लेकिन सफलतापूर्वक उसे निपटा दिया गया।लेकिन इंडिया ब्लॉक कल भी और आज भी भीतरघात की आशंका से ग्रसित है। 12 जगह पर तो दोस्ताना संघर्ष की बात कही जा रही है।समझ में नहीं आ रहा है कि इन सीटों पर इंडिया ब्लॉक के नेता एक दूसरे को कैसे एक ही सीट पर आरोप लगाएंगे या फिर अपने को श्रेष्ठ बताकर अपने लिए वोट मांगेंगे। अपने को बेहतर साबित करेंगे।जनता पर इसका प्रभाव पड़ना ही है। फायदा तीसरे को होगा।
चलिए मूल विषय पर आते हैं। जैसा कि हम बताना चाहते हैं कि बिहार में नवंबर, 2005 से नीतीश कुमार की ही सरकार है। 20 साल के इस कालखंड में बिहार ने बहुत कुछ देखा है।बिहार में अराजकता और भय का माहौल जो हुआ करता था लोग उससे बाहर आए।1990 के बाद बिहार में जो गैर कांग्रेसी सरकार बनी उसे जनता ने देखा।उसने जो बदलाव किया।उसे दौर को लोग आज भी याद रखते हैं।विकास के नाम पर अलग-अलग तर्क गढ़े जाते थे। गरीब और गरीब भी के कंधे पर बंदूक रखकर वह माहौल बनाया गया जिसमें समृद्ध और व्यावसायिक वर्ग के लिए संकट उत्पन्न हो गया था।अराजकता का वह दौर नव मतदाता वर्ग नहीं देखा है।पर आज सोशल मीडिया के दौर में उन चीजों से अनभिज्ञ भी नहीं है।
जातीय समीकरण को किस प्रकार से बनाने का प्रयास हुआ कि कुर्सी सलामत रहे और सत्ता जागीर बनकर रह जाए,यह प्रयास मुकम्मल तरीके से हुआ।जिस लालू यादव को सत्ता की चाबी दी गई उस खजाने का क्या हुआ,चारा घोटाला और अलकतरा घोटाला उसके गवाह हैं। लालू यादव कथित रूप से दलित और पिछड़े वर्ग के मसीहा बनने का प्रयास किए।काम के बजाय व्यंग्यात्मक स्टाइल से उन्हें लुभाने का प्रयास किया। इससे एक बड़ा लाभ यह हुआ कि जो पिछड़ा वर्ग समृद्ध और अगड़े समाज के आगे चुप रहता था,उनकी जुबान पर अपने हक और अधिकार की बातें आने लगी।यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव आया लेकिन लालू यादव ने इस बदलाव को बदरंग कर दिया और दिशा भटका दिया।जातीय विद्वेष फैलने लगा। भूरा बाल साफ करो, इंजीनियर डॉक्टर अफसर का दोहन होने लगा।ईमानदार अफसर के साथ भेदभाव, महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया।गौतम शिल्पी कांड, एक आईएएस अफसर की पत्नी के साथ दुष्कर्म के मामले, सभी को याद हैं। डॉक्टर का अपहरण, मुख्यमंत्री आवास से उसके तार जुड़ने जैसे मामले ने बिहार की छवि ही खराब कर दी थी। अपराधियों का एक नया वर्ग तैयार होने लगा। रंगदारी और अपहरण जैसी घटनाएं बिहार की पहचान बनने लगीं।लोग भय में जीने लगे।
इधर चारा घोटाला मामले में लालू यादव के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बन गईं ।यह भी राजनीति का एक बड़ा उदाहरण है।जहां सत्ता पर बने रहने का अद्भुत उपक्रम किया गया। ऐसे ही समय अलग रास्ते से नीतीश कुमार अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। लालू यादव के साथी रहे नीतीश कुमार अलग राह पकड़े तो उन्हें सफलता मिलने लगी। जॉर्ज फर्नांडो स दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार की एक जोड़ी बिहार में विश्वास की राजनीति के पर्याय बने लगे रेल मंत्री और कृषि मंत्री के रूप में नीतीश कुमार के काम ने नीतीश कुमार को अलग पहचान दी निस्वार्थ राजनीति और ईमानदारी बिहार की राजनीति में एक तरह से गुम हो गई थी। नीतीश कुमार ने इस गुमशुदा को बाहर सार्वजनिक करने का प्रयास किया। लालू-राबड़ी शासन की अराजक स्थिति और नये राजनीतिक विकल्प ने नीतीश कुमार को आगे बढ़ाया। भाजपा का साथ मिलने से नीतीश कुमार सशक्त हुए।
फरवरी 2025 में पहली बार झारखंड अलग होने के बाद 243 सीटों पर बिहार में विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में किसी भी गठबंधन को पर्याप्त संख्या बल नहीं मिला जिससे सरकार बन पाती। इस दौरान रामविलास पासवान ने भी एक पाशा फेंका कि अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री बनाया जाए।परंतु, रामविलास पासवान कि यह कोशिश कमजोर थी, इसलिए असफल हो गई।
बिहार में राष्ट्रपति शासन लग गया। उसके बाद नवंबर 2005 में विधानसभा का चुनाव हुआ जिसमें नीतीश कुमार को आगे रखकर एनडीए ने सरकार बनाने लायक जीत हासिल की। यह बदलाव बिहार के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से बिहार की बदहाली को दूर करने के लिए विजन डॉक्यूमेंट बनाया। उस पर काम करना शुरू किया।
सत्ता संभालते ही नीतीश कुमार ने पुलिस को यह कड़ा संदेश दिया कि अपराधी का ना कोई जात है और ना कोई धर्म और ना ही कोई उसका पॉलिटिकल प्लेटफार्म होता है।अपराधी को सजा मिलनी चाहिए। इसका परिणाम यह हुआ कि सत्ता संपोषित अपराधी भी डर कर भागने लगे।उनके खिलाफ भी कार्रवाई होने लगी।
नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनते ही आधारभूत संरचना के निर्माण पर भी जोर दिया।बिजली के संचरण लाइन पर 2006 से पूरे बिहार में काम शुरू हुआ। सड़क निर्माण पर तेजी से काम हुआ। ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की टीम पर भरोसा कर नीतीश कुमार ने चौतरफा काम शुरू किया।इससे बिहार में बदलाव दिखने लगा।नीतीश कुमार ने बिहार के प्राचीन गौरव को भी पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। नालंदा महाविहार के जीर्णोद्धार के लिए एक स्टडी टीम बनी। इसके प्रमुख प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन थे।
बिहार में काम होने लगा।लोगों में विश्वास का माहौल महसूस होने लगा और इसका सीधा लाभ नीतीश कुमार को मिला।साल 2005 से नीतीश कुमार बिहार के महानायक के रूप में उभरे जो आज तक विश्वास के प्रतीक बने हुए हैं।नीतीश कुमार के संबंध में बिहार ही नहीं बल्कि इसके बाहर दूसरे राज्यों में भी एक आम धारणा है कि वह अपने लिए कुछ नहीं करते या सोचते हैं।उनका सिंगल एजेंडा बिहार का समग्र विकास है। पटना और अन्य जिलों के बीच कनेक्टिविटी को दुरुस्त करने पर काम शुरू हुआ। फ्लाईओवर का जाल बिछने लगा। राजनीतिक मोर्चे पर नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के सामाजिक समीकरण को तोड़ने के लिए भी अलग उपाय किए।दलित में से महादलित को अलग कर उनके कल्याण के लिए काम किया। उनके सामाजिक – आर्थिक उन्नयन के लिए लालू यादव के माई समीकरण को भी तोड़ने का काम किया। इस प्रकार नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से भी मजबूत हुए। भारतीय जनता पार्टी ने भी नीतीश कुमार पर पूरा विश्वास किया।नीतीश कुमार के चेहरे की बदौलत भारतीय जनता पार्टी भी बिहार में शासन में शामिल रही।बीच में कुछ समय के लिए नीतीश कुमार अलटी-पलटी मारे लेकिन सहजता के साथ नीतीश कुमार भाजपा के साथ ही फिट दिखे।
बहरहाल,नीतीश कुमार एक बार फिर 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए का चेहरा हैं। महागठबंधन ने उनके खिलाफ तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा हैं।वैसे विरोधियों के पास भी नीतीश कुमार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा ना आज है,ना पहले था यह एक बड़ी पूंजी एनडीए के लिए है। नीतीश कुमार के काम करने की शैली को सभी मानते हैं और जानते हैं। विकास का बिहार मॉडल बनाने में नीतीश कुमार के शासनकाल का बड़ा योगदान रहा है। वैसे यह कभी भी किसी को नहीं सोचना चाहिए कि आज की तारीख में कहीं भी राम राज्य हो सकता है। बिहार में भी अपराध है।परंतु अपराधी पकड़े जाते हैं।भ्रष्टाचार है पर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी होती है। भ्रष्टाचार की शिकायत पर काम होता है।महिला सुरक्षा और उनके नियोजन पर विशेष काम हुआ। पुलिस में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया गया।महिला सशक्तिकरण पर विशेष बल रहा है। शिक्षकों की नियुक्ति भी बड़ी संख्या में हुई है। इसलिए रोजगार के क्षेत्र में भी नीतीश सरकार ने काम किया है। अब बिहार की जनता पर सब कुछ निर्भर करता है कि उसे कुछ नया चाहिए या फिर गारंटीड गवर्नमेंट चाहिए।लोकतंत्र में जनता जनार्दन है। महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी यादव के समक्ष यही बड़ी चुनौती है। लोगों को विश्वास दिलाने का माहौल कैसे बनाएंगे। उनके साथ लालू – राबड़ी शासन की कथा साथ है।













