*बिहार विधानसभा चुनाव झारखंड की सरकार के लिए कितना महत्वपूर्ण, गठबंधन कायम रहेगा या कुछ और*
न्यूज़ डेस्क: बिहार विधानसभा का चुनाव इसी साल होने वाला है। बिहार में दो धड़ा चुनाव मैदान में मजबूती के साथ उतरने को तैयार है।एक इंडिया एयरलाइंस है दूसरा एनडीए एलाइंस दोनों एलायंस वोटों को बटोरने के का प्रयास कर रहे हैं।एक सत्ता में है तो दूसरा विपक्ष में।बिहार में तो अलटने- पलटने की भी राजनीति हो चुकी है लेकिन फिलहाल जो दृश्य है,उसके अनुसार एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन होने जा रहा है। एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा नीतीश कुमार हैं। भाजपा नीतीश कुमार के नेतृत्व को मानकर चुनाव में उतरेगी। यह पहले से घोषित है।
दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन का चेहरा बिना घोषित हुए भी तेजस्वी यादव हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल से आगे कोई विपक्षी दल नहीं है।तेजस्वी यादव वोटों की गोलबंदी का प्रयास कर रहे हैं। सामाजिक समीकरण को एक गुलदस्ते में सजाने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस और वामदल सभी जी जान लगाने का मूड दिखा रहे हैं।
पर अभी जो दिख रहा है शायद आगे वह प्यार मोहब्बत ना दिखे।टिकट की दावेदारी और उसके प्रकटीकरण में फर्क होता है। अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की सोच सभी की रहती है। मामला यहीं फसेगा। वैसे इंडिया गठबंधन के लोगों का कहना है कि सभी लोग समन्वय बनाकर चुनाव लड़ेंगे।
झारखंड मुक्ति मोर्चा भी झारखंड से बाहर बिहार में चुनाव लड़ने की ख्वाहिश रखता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने साफ तौर पर कहा है कि वह 12 सीटों पर तैयारी कर रहा है।लेकिन हालिया बैठक में इंडिया गठबंधन के तहत मोटे तौर पर जो सीटों के बंटवारे का स्वरूप उभर कर आया, उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा कहीं नहीं है।झारखंड मुक्ति मोर्चा इससे गुस्से में है।अपनी उपेक्षा से वह काफी नाराज है। पर कर भी क्या सकता है।आगे कैसे इस मुद्दे पर बात होगी और कितनी सफलता मिलेगी यह संदेह के घेरे में है ।झारखंड मुक्ति मोर्चा को बिहार में अधिक से अधिक 1 से 2 सीटें मिल सकती हैं। जमुई और कटोरिया सीट पर टिकट मिल सकता है परंतु राष्ट्रीय जनता दल या कांग्रेस इस पक्ष में नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल को लगता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीट देने का मतलब नुकसान गठबंधन का कराना है। झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन कुछ सरकार है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि सीट कैसे लिया जाता है,यह झारखंड मुक्ति मोर्चा जानता है। अभी बहुत समय बाकी है। मतलब झारखंड में गठबंधन धर्म का हवाला देकर सीट भुनाया जाएगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कहा है कि पिछली सरकार में राष्ट्रीय जनता दल का एक विधायक था।फिर भी उसे मंत्री बनाया गया। यह बात लालू यादव और तेजस्वी यादव को भूलना नहीं चाहिए। झारखंड मुक्ति मोर्चा को बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा नहीं रखनी चाहिए। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड के गठबंधन सरकार की सेहत पर प्रभाव पड़ सकता है। कांग्रेस से भी झारखंड मुक्ति मोर्चा का झारखंड में कई मुद्दों को लेकर तनातनी की स्थिति है। परंतु फिलहाल ऐसा कुछ नहीं जिससे सरकार की सेहत में कोई असर पड़े। परंतु बिहार विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल सकती है।