
रांची – झारखंड में भाजपा के सबसे बड़े सितारे बाबूलाल मरांडी हैं.उसकी रोशनी से ही झारखंड में भाजपा चक चक कर रही है. भरोसेमंद नेतृत्व के रूप में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें मानते हैं. झारखंड में भाजपा की नैया को वही पर लगा सकते हैं. आखिर क्यों इतना भरोसा उनके ऊपर पार्टी करती है इसे जानने का प्रयास करिए.
जब झारखंड बना उस समय पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री के तौर पर किसे चुना जाए, इस पर मंथन शुरू हुआ.उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी. एनडीए का गठबंधन था. बिहार से अलग होकर झारखंड नया राज्य बनने जा रहा. बाबूलाल मरांडी एक सामान्य चेहरा थे. वैसे बहुत तेज चर्चा थी कि खूंटी के पूर्व सांसद कड़िया मुंडा नवगठित झारखंड राज्य का मुख्यमंत्री हो सकते हैं. इस पर पूरा कयास लगाया जा रहा था. परंतु पार्टी एक ऐसा सहज व्यक्तित्व वाला चेहरा चाहती थी जो पार्टी के निर्देशों के अनुरूप काम कर सके.व्यक्तित्व में लचीलापन और संगठन की चिंता करने वाला हो.चेहरा तो आदिवासी ही होना था. बाबूलाल मरांडी केंद्र में मंत्री थे. गोविंदाचार्य और लाल कृष्ण आडवाणी को सबसे अधिक बाबूलाल मरांडी पसंद आए. इसलिए उन्हें केंद्र से राज्य में भेज दिया गया झारखंड की पहली सरकार के हुए पहले मुख्यमंत्री बने.
पार्टी ने झारखंड में गठबंधन सरकार के लिए बाबूलाल मरांडी को जो जिम्मा दिया, उस पर बाबूलाल मरांडी आगे बढ़ते रहे. नवगठित झारखंड राज्य के लिए एक विकास का विजन रखने वाला नेता चाहिए था. इस कसौटी पर खरा उतरने की दिशा में बाबूलाल मरांडी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे. संसाधन से परिपूर्ण और केंद्र सरकार के आशीर्वाद से झारखंड में काम होने लगा. इसमें झारखंड अलग राज्य बना उसे समय यह राज्य बेहद पिछड़ा हुआ था. आधारभूत संरचना का बड़ा अभाव था. उसे समय राज्य के 18 जिलों में से 17 उग्रवाद प्रभावित थे. नक्सली समस्या के कारण यह क्षेत्र पहले से ही पिछड़ा हुआ था. लेकिन नई सरकार ने काम करना शुरू किया नक्सलवाद की चुनौती से जूझने की कोशिश की गई. सड़कों का जाल बिछाने का काम शुरू हुआ. इस काम में नक्सली बाधक बन रहे थे. बाबूलाल मरांडी की सरकार ने पुलिस को खुली छूट दी. धीरे-धीरे कम होता गया विकास पर फोकस करना इस सरकार का मुख्य एजेंडा था. सड़क समेत आधारभूत संरचना के क्षेत्र में तेजी से काम हुआ बाबूलाल मरांडी कार्यों की गुणवत्ता पर हमेशा से ध्यान देते रहे. वे सड़क निर्माण का औचक निरीक्षण करने के लिए भी रात में निकल पड़ते थे. पिछड़ेपन का शिकार झारखंड जैसा नया राज्य राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आने लगा.
बाबूलाल मरांडी की सरकार मोटे तौर पर 27 महीने तक रही लेकिन इस दौरान झारखंड में तेजी से काम हुआ. बाबूलाल मरांडी को विकास पुरुष के नाम से जाना जाने लगा. यह अलग बात है कि भाजपा के अंदर ही और गठबंधन के कुछ लोगों ने स्थानीयता के विषय को लेकर राजनीतिक संकट उत्पन्न किया. जिस कारण से बाबूलाल मरांडी को सरकार का नेतृत्व छोड़ना पड़ा. उसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सरकार बनी. यह अलग बात है कि 2006 में बाबूलाल मरांडी भाजपा को त्याग कर अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बना ली थी. भाजपा से उनका यह यह विलगाव लगभग 14 साल रहा. 2019 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा सत्ता से बाहर हो गई तब पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को कुछ नए प्रयोग करने की छटपटाहट महसूस हुई.बाबूलाल मरांडी को भी यह लग रहा था कि वह भाजपा में अगर सम्मान के साथ उन्हें बुलाया जाता है तो वह चले जाएंगे.उधर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम को भी यह लग रहा था कि झारखंड में संगठन को मजबूत करना है और 2024 की चुनौती के लिए अगर पार्टी को फिर से जनाधार वाला बनाना है तो बाबूलाल मरांडी का चेहरा फिट होगा बस यही सब कुछ सोच विचार कर भाजपा में बाबूलाल मरांडी आ गए. पार्टी को भी इसमें मिला दिया.
बहरहाल,राजनीति के जानकार मानते हैं कि बाबूलाल मरांडी का मोटे तौर पर 2 साल का कार्यकाल झारखंड के लिए एक अच्छा आगाज था.नए राज्य के लिए विकास को पटरी पर लाने का भरसक प्रयास किया गया. इस पर आगे काम हुआ लेकिन जो रफ्तार बाबूलाल मरांडी के समय थी, वैसी 2014 तक नहीं दिखी. हां यह जरूर कहा जा सकता है कि रघुवर सरकार में काम हुआ. रघुवर सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त था. किसी प्रकार की राजनीतिक अस्थिरता के बादल नहीं थे. आधारभूत संरचना के क्षेत्र में काम हुआ है. बाबूलाल मरांडी वर्तमान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. उनकी पुरानी छवि पार्टी के लिए भरोसे का एक बड़ा आधार रही है. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड में सबसे अधिक बाबूलाल मरांडी पर भरोसा कर रहा है. वे कभी विवादों में नहीं रहे हैं.अभी एक बड़ा मजबूत आधार रहा है. लेकिन परीक्षा की घड़ी फिर आ रही है. झारखंड में भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती है. सत्ता पक्ष के खिलाफ 2024 के लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए अच्छा माहौल बनाना आसान काम नहीं है. फिर भी बाबूलाल मरांडी पूरा प्रयास कर रहे हैं.(DESK)











