झारखंड में डुमरी सीट पर हुए उपचुनाव का परिणाम 8 सितंबर को घोषित हो गया था.जनता ने बेबी देवी के सिर पर जीत का ताज सजाया.दरअसल डुमरी उपचुनाव में झारखंड की सियासत तो तेज थी ही लेकिन इसके अलावा कई सवाल भी खड़े हुए.गौरतलब है कि झारखंड के अभ्यर्थी सरकार और सरकार की नीतियों के खिलाफ लगातार आंदोलन करते हुए नजर आते रहे है.राज्य के अभ्यर्थियों ने कई बार इसको लेकर रणनीति भी बनाई थी और कई बार राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आवास का घेराव भी किया था.आपको बता दे की अभ्यर्थियों के आंदोलन के बीच रामगढ़ में उपचुनाव की घोषणा हुई थी और कई अभ्यर्थियों ने दावा किया था की वो लोग सरकार को सबक सिखाने के लिए चुनावी मैदान में उतरकर अपनी किस्मत आजमाएंगे,और ऐसा ही नजारा रामगढ़ में देखने को मिल रहा था जहां कई अभ्यर्थियों ने नॉमिनेशन दाखिल किया था.हालांकि नतीजे जब सामने आए तो वो अभ्यर्थियों(उम्मीदवारों)के हित में नहीं थी.अभ्यर्थियों की ओर से यह कहा जा रहा था की वो लोग रुकेंगे नहीं बल्कि नीतियों के खिलाफ लड़ेंगे,ये अनुमान लगाया जा रहा था कि डुमरी उपचुनाव में भी अभ्यार्थी कुछ ऐसा ही करेंगे,कई अभ्यर्थियों ने तो दावा भी किया था की डुमरी में कई अभ्यर्थी अपनी किस्मत आजमाएंगे लेकिन डुमरी उपचुनाव में ऐसा हुआ नहीं.सवाल लगातार उठते रहे की अभ्यर्थियों और साकार में साठ गाँठ हो चुकी है.
*अभ्यर्थियों ने जेएमएम का किया था सहयोग*?
झुमरी उपचुनाव में अभ्यर्थियों ने चुनावी मैदान में उतरने से अपने पैर पीछे खींच लिए थे.दरअसल यह कहा जा रहा था कि इस बार भी अभ्यर्थी कुछ ऐसा करेंगे जो रामगढ़ उपचुनाव में देखने को मिला था, लेकिन कई ऐसे अभ्यर्थी जो लगातार सरकार के खिलाफ विरोध करते हुए नजर आते थे वह कहीं ना कहीं प्रचार प्रसार में देखने को मिले थे और उसको लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे थे कि आखिर अभ्यर्थियों का आंदोलन खत्म हो गया है क्या? क्या राज्य के युवा और सरकार के बीच चीज़े फिक्स हो गई है क्या? कई सवाल उत्पन्न हो रहे थे.
क्या कह रहे राज्य के अभ्यर्थी?
अभ्यर्थियों का दावा है कि अभ्यर्थियों ने डुमरी उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा का साथ नहीं दिया था. छात्र नेता योगेश भारती बताते हैं कि हमारी जो रणनीति रहती है उसी के तहत हम लोग काम करते हैं और रामगढ़ उपचुनाव में मैं खुद किस्मत आजमाने के लिए चुनावी मैदान में उतरा था, डुमरी मेरा क्षेत्र नहीं है जिसका क्षेत्र है वह लोग निर्णय नहीं ले पाए थे कि आखिर वह चुनावी मैदान में उतरेंगे या फिर नहीं लेकिन सिर्फ इसे यह साबित नहीं होता कि हम लोग सरकार के साथ है हम लोग सरकार के खिलाफ है क्योंकि सरकार गलत नीतियों लेकर आती है और आने वाले समय में हम लोग इसी तरीके से आंदोलन करते हुए नजर आएंगे.