न्यूज़ डेस्क : झारखंड में भाजपा संक्रमण काल से गुजर रही है। सांगठनिक रूप से भाजपा का का पर्व पिछले दिसंबर से शुरू हुआ। पहले सदस्यता अभियान रूक रूक कर मंथर गति से चला। फिर सक्रिय सदस्यता अभियान चला। डिजिटल तरीके से विश्वसनीय तरीके से यह सब का हुआ है। इसकी रफ्तार अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही।
अब भाजपा के मंडल अध्यक्षों के नाम घोषित होने शुरू हुए हैं। 14 दिसम्बर यानी खरमास तक यह काम पूरा हो जाएगा। पार्टी नेतृत्व रायशुमारी से यह काम करना चाहता है। उसके बाद जिला अध्यक्षों का चुनाव होगा। उसके बाद बारी आएगी प्रदेश अध्यक्ष की।
झारखंड में भाजपा विपक्ष में है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। चुनावी रणनीतिक चूक के कारण भाजपा 2019 के हिसाब से और पीछे चली गई। उसके 21 विधायक जीत सके। जनता की नब्ज़ समझने में भाजपा नेता विफल रहे।पार्टी के कार्यकर्ता नाम नहीं छापने की शर्तों पर कहते हैं कि बाहरी नेता और उनके चमचे ने सब डूबा दिया। कार्यकर्ताओं की भरपूर उपेक्षा की गई।
टिकट बंटवारे और चुनावी मुद्दों पर भाजपा गच्चा खा गयी। प्रदेश स्तरीय नेता भाजपा की डूबती नैया को डूबते देखते रहे। साफ झलक रहा था कि प्रदेश के प्रमुख नेता चर्चा है। को पीछे छोड़ दिया गया या फिर वे खुद पीछे हट गये।
अब यह हाल है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह ही नहीं दिख रहा है। ऐसे समय में भाजपा को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो पार्टी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर सके। आज महत्वपूर्ण विषय यह है कि भाजपा को कैसा अध्यक्ष चाहिए। क्योंकि बाबूलाल मरांडी तो नेता प्रतिपक्ष बन गए। इसलिए झारखंड भाजपा को फुल फ्लेजेड यानी पूर्णकालिक अध्यक्ष चाहिए। 
झारखंड में अगला विधानसभा का चुनाव 2029 के नवंबर में होगा। ऐसे में संगठन को मजबूत करने की जरूरत है। सभी को साथ लेकर चलने वाला चाहिए। वैसे नेता की जरूरत है जो कार्यकर्ताओं को जगा सके। जिनके मुंह में बोली ही नहीं हो तो वह पार्टी को कहाँ ले जाएगा। सामाजिक समीकरण को अभी किनारे रखना चाहिए। ओबीसी वर्ग से अगला अध्यक्ष होने के संकेत मिले हैं। इस मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व को यह देखना चाहिए कि आखिर कौन सा चेहरा हो सकता है। यह भी विचारणीय विषय है कि संगठन की नजर में अच्छा और समर्पित व्यक्ति अध्यक्ष हो तो यह बेहतर है।
झारखंड भाजपा के अध्यक्ष के लिए थोड़े दिन पूर्व आदित्य साहू की नियुक्ति की गई। रबीन्द्र राय को हटा दिया गया। यह सवर्ण वोटरों को अच्छा नहीं लगा। परंतु, कुछ और सोचा जा सकता है। रघुबर दास भी लोकप्रिय नेता हैं। एक साल से बड़ा दायित्व पाने की आस लगाए हुए हैं। परंतु आज तक कुछ नहीं हुआ। आदित्य साहू भी जमीनी नेता हैं। उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। कार्यकर्ता जलवा वाले अध्यक्ष की चाहत रखते हैं। संगठन को जो मजबूत कर सके, यह समझना होगा। महामंत्री और राज्यसभा सदस्य प्रदीप वर्मा के नाम की भी चर्चा। प्रदीप वर्मा ने पार्टी के लिए बहुत कुछ किया है। ऐसा पार्टी के कार्यकर्ता मानते हैं। वे हर तरह से सक्षम हैं।
रवींद्र राय भी अच्छे नेता रहे हैं। वे भी दावेदार बताए जाते है। वे बोलने में भी तेज हैं। यह लगभग तय माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें महत्वपूर्ण दायित्व देगी। पर प्रदेश अध्यक्ष के लिए कोई और चेहरा हो सकता है। पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि झारखंड में संगठन को पहले मजबूत करने की जरूरत है। सरकार के खिलाफ मुखरता से विरोध करने वाला व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहिए जो सभी को साथ लेकर चल सके। इसलिए लगता है कि कोई मजबूत अध्यक्ष यहाँ होना चाहिए। जो विपक्ष की धार को तेज कर सके।














